दर्योधन भरी दुरमत ,
खीजत सारी खांच ।
दीन पुकारै द्रोपदी
पांडव बैठा पांच ।
।। छंद मतगंयद सवैया द्रोपदी पुकार।।
पांच पती बिच लाज पछाड़त ,
दी वचनां बध दानव धारी ।
खींचत चीर सभाय खचाखच ,
दौपद को कुण दै दिल दारी ।
कौरव काळ भयो किण कारण ,
नारण आगळ कूकत नारी ।
हो करुणा कर लाज बचा हम ,
गौरव रूप बणो गिरधारी ।(१)
हेरत लाज जुऐ मिज हारत ,
प्रीतम कोण बणै पतधारी ।
कौरव क्रोध कियो जब कायम ,
कोय न लागत है अब कारी ।
भीषम भाव भयो भय भीषण ,
है न विभीषण ना हितकारी ।
हे करुणा कर लाज बचा हम ,
गौरव रूप बणो गिरधारी।(२)
खेद मती दुरियोधन खेलत ,
सायब देखत खीचत सारी ।
हालत हीन दुराचर हींसत ,
पींचण पाप पगो पग पारी ।
द्रोपदि धीर अधीर दुसाशन ,
ना सत छौड़त नासत नारी ।
हे करुणा कर लाज बचा हम,
गौरव रूप बणो गिरधारी ।(३)
पांडव दाव बधैं सब पांखड ,
हो सकुनी धत हीमत हारी ।
पांच पती अब है पछतावत ,
लानत दैकर जो ललकारी ।
साच छुटे छिटके सत सायब ,
नाविक कोण बणै निरधारी ।
हे करुणा कर लाज बचा हम ,
गौरव रूप बणो गिरधारी ।(४)
पीर परी गिरधारिय पारत ,
लानत तोड़ करो ललकारी ।
हे बलदेव बधूं बन हीमत ,
बेनड़ काज बणो बलधारी।
कूक सुणी जब कान कड़ाकड़ ,
खोट लगी दुरयोधन खारी ।
हे करुणा कर लाज बचा हम
गौरव रूप बणै गिरधारी ।(५)
चीर बढ़ाकर चेन चुराकर ,
दी ललकार दु सासन धारी ।
हीमत हार हतास कियो हठ ,
सींचत चीर बढी बहु सारी ।
द्रौपद काज ख्याल रखे दिल ,
दीन दयाल दिवी दिलदारी ।
हो करुणा कर लाज बचा हम,
गौरव रूप बणै गिरधारी।(६)
अम्ब उसी पल आ अवतारित ,
सींचत जैम बढ़ी बहु सारी ।
पारण पार प्रभू पत पैखत ,
दीसत ना उथ दानव चारी ।
भाव सचै भगवान भजो तुम ,
प्रीत तहां रखसी पतधारी ।
हो करुणा कर लाज बचा हम,
गौरव रूप बणै गिरधारी ।(७)
।। छप्पय ।।
द्रौपद तणी दहाड़ , हाजिर हुओ हितकारी ।
दैण दुसाशन दाद ,पाळौ पुगो पतधारी ।
खींचताण खूंखार , सत पत बढाई सारी ।
पंचाळी सुण पुकार , गौरव बणै गिरधारी ।
सत अम्ब रखे नित सांवळौ , पंचाळी चीर पुरयो ।
करुणा द्रोपदी करे कृष्ण, धर्म सत गीता धरयो ।
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