रेणकी छंद
सर सर पर सधर अमर तर अनसर,करकर वरधर मेल करै।
हरिहर सुर अवर अछर अति मनहर, भर भर अति उर हरख भरै
निरखत नर प्रवर प्रवरगण निरझर, निकट मुकुट सिर सवर नमै।
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घण रव पर फरर धरर पद घुघर, रंगभर सुंदर श्याम रमै।1
झणणणणण झणण खणण पद झांझर, गोम घणा गणणणण गयणै।
तणणण बज तंत ठणणण टंकारव,रणणण सुर धणणण रयणै।
त्रह त्रह अति त्रणण ध्रणण बज त्रासा,भ्रमण वत रमण भ्रमै।
घण रव पर फरर धरर पद घुघर, रंगभर सुंदर श्याम रमै।2
झट पट पर उलट पलट नटवत झट, लट पट कट घट निपट ललै।
कोकट अति उकट गति धुन कट, मन डरमट लट लपट मलै।
जमुना तट प्रगट अमट अट रट जूट, सूर पट खेखट तेण समै।
घण रव पर फरर धरर पद घुघर, रंगभर सुंदर श्याम रमै।3
धमंधम अति धमक ठमत पद घूमर,धमधम फळ सम होत धरा।
भ्रम भ्रम वत विषय परिश्रम व्रत भ्रम, खमखम दम अहि विडुम खरा।
गम गति अति अगम निगम न लहत गम, नटवत रमझम गम मन में।
घण रव पर फरर धरर पद घुघर, रंगभर सुंदर श्याम रमै।4
गत गत पर ऊगत तूगत नृत प्रियगत, रत उनमत चित वधत रति।
तत पर घ्रत नचत उचत मुख थैथत, आब्रत अत उत भ्रमत अति।
धिधितत गत वजत मृदंग सुर उपजत, कृत भ्रत नर तम अतंत क्रमै।
घण रव पर फरर धरर पद घुघर, रंगभर सुंदर श्याम रमै।5
ढल ढल रंग प्रगल अढल जन पर झल,झल अल कल तेज झरै।
खलखल भुज चूड़ चपल अति खमकत, कान कतोहल प्रबल करै।
वलवल गल हस्त तु मल चल चितवल, जुगल जुगल प्रति रंग भरै।
घण रव पर फरर धरर पद घुघर, रंगभर सुंदर श्याम रमै।6
सरवस वस मोह दरस सुरथित शशि, अरस परस त्रस चरस अति।
कसकस पट हुलस विलस चित आकृष, रस बस खुश हस वरस रति।
ट्रस नव रस सरस भयो ब्रह्मानंद, अनरस मनस तरस अधमै।
घण रव पर फरर धरर पद घुघर, रंगभर सुंदर श्याम रमै।7
रचियता :- ब्रह्मानंद स्वामी (लाडुदान गढवी)
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