छंद त्रिभंगी ( नीतिगत छंद )

छंद त्रिभंगी ( नीतिगत छंद )

नीति 


दोहा 

हर विपति हाथसे , डर पर दारा दाम .


धर ईश्वर नित ध्यानमे , कर नेकी के काम .

छंद त्रिभंगी

कर नेकी करमसे डरपर धरसे , पाक नजरसे धर प्रिती.


जप नाम जीगरसे बाल उमरसे , जसले जरसे मन जीती .


गंभीर सागरसे रहे सबरसे , मिले उधरसे परवाना .


चित चेत सिंहाना फीर नहीं आना , जगने आखर मर जाना..||1||



मद ना कर मनमे मिथ्या धनमे , जोर बदनमे जोबनमे.


सुख हे न स्वपनमे जीवन जनमे , चपला धनमे छनछनमे.


तज वेर वतनमे द्रेश धरनमे नाहक ईनमे तरसाना .


चित चेत सिंहाना फीर नहीं आना , जगने आखर मर जाना..||2||



जुठा हे भाई बाप बडाई , जुठी माई माजाई .


जुठा पित्राई जुठ जमाई , जूठ लगाई ललचाई.


सब जूठ सगाई अंत जुदाई , देह जलाई समसाना .


चित चेत सिंहाना फीर नहीं आना , जगने आखर मर जाना..||3||



कोई अघिकारी भुजबलभारी कोउ अनारी अहंकारी .


कोउ तपधारी फल आहारी , कोउ विहारी वृतधारी .


त्रस्ना नहीं टारी रह्या भीखारी , अंत खुवारी उठ जाना .


चित चेत सिंहाना फीर नहीं आना , जगने आखर मर जाना..||4||



तज पाप पलीती असत अनीती , भ्रांती भीती अस्थिती .


सज न्याय सुनीति उत्तम रिती , प्रभू प्रतिति धर प्रिती .


ईन्द्री ले जातीसुख साबिती , गुण माहिती द्रढ ज्ञाना .


चित चेत सिंहाना फीर नहीं आना , जगने आखर मर जाना..||5||



दुनिया दो रंगी तरक तुरंगी , स्वार्थ संगी अेकंगी .


होजा सतसंगी दुर कुसंगी , ग्रहेन  टंगी जम जंगी .


*पिंगल* सुप्रसंगी रचे उमंगी , छंद त्रिभंगी सरसाना .


चित चेत सिंहाना फीर नहीं आना , जगने आखर मर जाना..||6||



*रचियता :- कवि श्री पिंगळशीभाई पाताभा ई नरेला*

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