।। दौहा ।।
ईस इळापर अवतरे ,
सूरे घर सुरवेस।
कापड़ियो हिंगलाज रो,
भळक्यो भादरेस।(१)
भू उजाळ भादरेस री ,
गायो जस गुजरात।
छायो गुण हरिरस छटा,
खमां ईसरा ख्यात।(२)
ईस सदानंद अरसियो,
रूप हरीरस राच।
टीकम मिळयो तिणघड़ी ,
वेण वेद गुण वाच।(३)
रूप हरीरस राम रो,
श्री धर रहत संगाथ।
पाप झड़े सब पिंड रा,
नमे त्रिभुवन नाथ।(४)
साच दुरगा सप्तसती
दर्स कर देवियांण ।
जप तप सतसुख जगत रो
जगदंब गती जाण।(५)
सांप्रत हरी साखणै,
आपी पदवी अष्ट ।
सांपी हरिवर सायबी,
नुगरा पण की नष्ट ।(५)
खटमासां खंखाळियो,
सांगो नदी संगाथ ।
लायो ईसर लोकमों,
परंम धजावण पाथ।(६)
कांबळ ओढण कारणे,
महकायी मरजाद।
सांगो बुलाय सरगसुं ,
जाणप राखी याद।(७)
ईस ईसवर ऐकही,
ऐकि गती अवसाण।
नेक नीति नारायणो ,
प्रेम अम्ब पहचाण ।(८)
जग जुहार कर जांचलौ,
हर रस हरिरस हेक।
नेक टेक री नीतियां ,
अखी हरिगुण अनेक।(९)
।। छंद मत गयंद सवेया ।।
ईस अनेक विधीय अराधत
वेद सुवेण सुधार वचायौ।
आप (दै) उजास विवेक अहोनिस ,
पौ परमारथ पंथ पढायौ।
होत हुलास उलास सदा हरि
नाथ नवाखँड में निरखायौ।
वेद तणो कर छाण विसंभर ,
ध्यान सदा नँद ईसर धायो ।
जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(१)
साच निवास उपास सदाशिव ,
वास सुवास विलास वसायो।
आपहि ग्यान कियोय उजागर ,
देव सँसार हरी दरसायो।
नाथ अनाथ समाथ नवेनिध ,
वेण निरँत्तर नाम वचायो।
वेद तणो कर छाण विशंभर ,
ध्यान सदानँद ईसर धायो ।
जीय रीत रचाकर धीस रिझायो।(२)
हेत रिदेरस हीर हसावण ,
वीठल वास दिलां विलसायो।
पात कि बात समाथ पढावण ,
रास सदा रघुनाथ रचायो।
ग्यान सुणाय रचाय गुरू गुण,
सार हरीरस मैं समझायो।
वेद तणो कर छाण विशंभर ,
ध्यान सदा नंद ईसर धायो ।
जिय रीत रचाकर धीस रिझायो (३)
वेल वधारण लाज बचावण ,
बात निभावण गोड़ बुलायो।
कांबळ को बगसावण कांरण,
पात सनातन पाठ पढायो।
संग जिमाय सखाचित साचकि ,
मोहन रूप मनां मुळकायो।
वेद तणो कर छाण विशंभर ,
ध्यान सदा नंद ईसर धायो ।
जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(४)
सप्तसती दुरगा दिल सारण ,
देवि पुराण दिलां दरसायो।
अष्ट पदां विच पारस ईसर ,
प्रीत घणी परमेसर पायौ।
गाय सुणाय रसा गिरधारिय,
झार अमीरस जाप जपायो।
वेद तणो कर छाण विशंभर ,
ध्यान सदा नँद ईसर धायो ।
जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(५)
धीस रमाड़ खँमा धरणीधर ,
तो सरणो दुनियांण तरायो।
ईस विधी सुर अाप उपासत ,
अंतर आदर भाव उपायो।
वीठल वास रिदे सुर वायक ,
चेन चितां चरचा चरचायो ।
वेद तणो कर छाण विशंभर ,
ध्यान सदा नँद ईसर धायो ।
जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(६)
ग्यान गुरू गुण आखर गोतर ,
भाण पितांबर भाव भणायौ।
ईस छटा छलकाकर आपहि ,
पात सनातन पाठ पढायौ।
हेत रमाय हरी हिरदै मिझ ,
मालक मोज मनां मुळकायौ।
वेद तणो कर छाण विशंभर ,
ध्यान सदा नँद ईसर धायो ।
जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(७)
नीर समाय सदासुख नारण ,
देव दिलां विच में दरसायो।
अश्व समेत समाय अखीसुख ,
नेह निभावण नारण नायौ।
अाखत अम्ब महासुख आसन ,
प्रीत सुँ ईसर दर्सण पायो।
वेद तणो कर छाण विशंभर ,
ध्यान सदा नँद ईसर धायो ।
जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(८)
।। छप्पय ।।
रास हरिरस रमाण ,
गुरू गिरधर गुण गायौ ।
कापड़ियो हिंगलाज ,
ईस सूरे घर आयौ।
ज्वालागिरि जगदीस ,
बाण सांगौय बुलायौ।
कर्ण जीवत करेह ,
सत जगदीस समझायौ।
आदेस अहोनिस ईसरा ,
सदानंद आंणद सदा।
नाम ईसर नित अम्ब नमो ,
जाणूँ न ईस सूँ जुदा ।
आम्बदान जवाहरदान देवल आलमसर
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