श्री ईसरदास रो जस ।।




        ।। दौहा ।।


ईस इळापर  अवतरे ,

सूरे घर सुरवेस।

कापड़ियो हिंगलाज रो,

भळक्यो भादरेस।(१)


भू उजाळ भादरेस री ,

गायो जस गुजरात।

छायो गुण हरिरस छटा,

खमां ईसरा ख्यात।(२)


ईस सदानंद अरसियो,

रूप हरीरस राच।

टीकम मिळयो तिणघड़ी ,

वेण वेद गुण वाच।(३)


रूप हरीरस राम रो,

श्री धर रहत संगाथ।

पाप झड़े सब पिंड रा,

नमे त्रिभुवन नाथ।(४)


साच दुरगा सप्तसती

दर्स कर देवियांण ।

जप तप सतसुख जगत रो

जगदंब गती जाण।(५)


सांप्रत हरी साखणै,

आपी पदवी अष्ट ।

सांपी हरिवर सायबी,

नुगरा पण की नष्ट ।(५)


 खटमासां खंखाळियो,

सांगो नदी संगाथ ।

लायो ईसर लोकमों,

परंम धजावण पाथ।(६)


कांबळ ओढण कारणे,

महकायी मरजाद।

सांगो बुलाय सरगसुं ,

जाणप राखी याद।(७)


ईस ईसवर ऐकही,

ऐकि गती अवसाण।

 नेक नीति  नारायणो ,

प्रेम अम्ब पहचाण ।(८)


 जग जुहार कर जांचलौ,

हर रस हरिरस हेक।

नेक टेक री नीतियां ,

अखी हरिगुण अनेक।(९)


  ।। छंद मत गयंद सवेया ।।


ईस अनेक विधीय अराधत 

वेद सुवेण सुधार वचायौ।

आप (दै) उजास विवेक अहोनिस ,

 पौ परमारथ पंथ पढायौ।

होत हुलास उलास सदा हरि

 नाथ नवाखँड में निरखायौ।

वेद तणो कर छाण विसंभर ,

 ध्यान सदा नँद ईसर  धायो ।

जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(१)


साच निवास उपास  सदाशिव ,

 वास सुवास विलास वसायो।

आपहि ग्यान कियोय उजागर ,

देव सँसार हरी दरसायो।

नाथ अनाथ समाथ नवेनिध ,

 वेण निरँत्तर नाम वचायो।

वेद तणो कर छाण विशंभर ,

 ध्यान सदानँद ईसर  धायो ।

जीय रीत रचाकर धीस रिझायो।(२)


हेत रिदेरस हीर हसावण , 

वीठल वास दिलां विलसायो।

पात कि बात समाथ पढावण , 

रास सदा रघुनाथ रचायो।

ग्यान सुणाय रचाय गुरू गुण, 

सार हरीरस मैं समझायो।

वेद तणो कर छाण विशंभर ,

ध्यान सदा नंद ईसर धायो ।

जिय रीत रचाकर धीस रिझायो (३)


वेल वधारण लाज बचावण , 

बात निभावण गोड़ बुलायो।

कांबळ को बगसावण कांरण,

 पात सनातन पाठ पढायो।

संग जिमाय सखाचित साचकि ,

मोहन रूप मनां मुळकायो।

वेद तणो कर छाण विशंभर ,

ध्यान सदा नंद ईसर धायो ।

जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(४)


 सप्तसती दुरगा दिल सारण ,

देवि पुराण दिलां दरसायो।

अष्ट पदां विच पारस ईसर ,

प्रीत घणी परमेसर पायौ।

गाय सुणाय रसा गिरधारिय,

झार अमीरस जाप जपायो।

वेद तणो कर छाण विशंभर ,

 ध्यान सदा नँद ईसर धायो ।

जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(५)


धीस रमाड़ खँमा धरणीधर , 

तो सरणो दुनियांण तरायो।

ईस विधी सुर अाप उपासत , 

अंतर आदर भाव उपायो।

वीठल वास रिदे सुर वायक  ,

चेन चितां चरचा चरचायो ।

वेद तणो कर छाण विशंभर ,

ध्यान सदा नँद ईसर धायो ।

जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(६)


ग्यान गुरू गुण  आखर गोतर ,

 भाण पितांबर भाव भणायौ।

ईस छटा छलकाकर आपहि , 

पात सनातन पाठ पढायौ। 

हेत रमाय हरी हिरदै मिझ ,

मालक मोज मनां मुळकायौ।

वेद तणो कर छाण विशंभर ,

ध्यान सदा नँद ईसर धायो ।

जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(७)


नीर समाय सदासुख नारण ,

देव दिलां विच में दरसायो।

अश्व समेत समाय अखीसुख ,

नेह निभावण नारण नायौ।

अाखत अम्ब महासुख आसन ,

प्रीत सुँ ईसर दर्सण पायो।

वेद तणो कर छाण विशंभर ,

ध्यान सदा नँद ईसर धायो ।

जिय रीत रचाकर धीस रिझायो ।(८)


          ।। छप्पय ।।

रास हरिरस रमाण ,  

गुरू गिरधर गुण गायौ ।

कापड़ियो  हिंगलाज ,

 ईस सूरे घर आयौ।

ज्वालागिरि जगदीस , 

बाण सांगौय बुलायौ।

कर्ण जीवत करेह , 

सत जगदीस समझायौ।

आदेस अहोनिस ईसरा ,

 सदानंद आंणद सदा।

नाम ईसर नित अम्ब नमो , 

जाणूँ न ईस सूँ जुदा ।


आम्बदान जवाहरदान देवल आलमसर 

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