छन्द रेणकी- कवि कान जी गांगड़ा

charan sahitya


छन्द रेणकी- कवि कान जी गांगड़ा



मळया आय मिथिलापुरी , भूतळरा के भूप !!

गर्व सकळ रा गाळिया , राघव कुळरा रुप !!१!!

धनुष धरण जब तुं धस्यो , लौचन अरूण लिलाट !!

पद चंपत पगनेश , डग दीसा डणणाट !!२!!


डणणणणण दीस दिग्गज सह डणकत भणण खणण ब्रह्मांड भयो :

गणणणणण गहर गुहागिरी गणकत ठणण ठणण टंकार थयो :

कणणण लंक नृपाळ कणंकत गणण गणण शीर मुगट ग्रीयो :

धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!१!!


कड़ड़ड़ड़ड़ व्योम गोम पड़ कड़कत अड़ड़ अड़ड़ समुदर उछळं :

थड़ड़ड धाम छोड़ खळ थड़कत धड़ड़ धड़ड़ धर नमत ढळं :

गड़ड़ड़ड़ चंद्र लोक लग गड़गड़ फड़ड़ फड़ड़ हय फांण फर्यो :

धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!२!!


कटकटकट सपट झपट फटफट थट खटखट झटपट उलट झटयो :

भटभटभट भटक भटक भय भटभट फटक फटक मनु व्योम फटयो :

घट घट घट अमट अर्यां गभरावट हटहटहट खळदळ हहर्यो :

धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!३!!


झक झक झक नमक रमक झणकारव दमक चमक हर ध्यांन खुले :

छकछक मद अछक अछक्के तक तक भटक भटक भट खटक भूले :

 हकबकहिय सठक गठकटक नाटक फटक फटक थक थक फफर्यो :

धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!४!!


खळभळ अळ प्रबळ प्रबळ तळ पातळ खळखळ कळ बळ अकळ खसे :

डळडळडळ डळत ढळत भुदरसर तळतळ थळथळ सभड़ त्रसे :

झळ झळ झळ झळकझळक कर झळकत खळकखळक सुर कुसुम खर्यो :

धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!५!!


सगवगनग अडगअडग चगचगचग जगजगजग रणंकार जग्यो :

टगटगटग टगर मगर खगखगखग छगछग रग पग अछग छग्यो :

फगफगफग विलग विलग मगडगडग नगनग भग सुरराज नर्यो :

 धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!६!!


खररर अपर अपरं वरधर पर पर धरधर पर अमर पर्यो :

झररर सरर सरर झट झांझर सुरपर परहर सकर सर्यो:

कर कर कर जयति कौशीककर धर धर हर धनु सधर धर्यो :

धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!७!!


सत सत कृत अमत श्रवत दशरथ सत रजत रजत सुर प्रमुद रह्यो :

ध्रत ध्रत ततकाल हारगल सीतरत गत मत रत गुर चरन ग्रह्यो :

क्रत क्रत अत कांन दांन नीज क्रत दत भजत भजत भव पार कर्यो :

धणणण शैष कोल कच्छ धणकत धनुष हाथ रघुनाथ धर्यो !!८!!


कळस छन्द छप्पैया

धर्यो धनुष रणधीर , वीस्मय घणा विदार्या :

धर्यो धनुष रणधीर , ताप मुनि गणरा टाळ्या :

धर्यो धनुष रणधीर लंक रोळण खग लीधो :

धर्यो धनुष रणधीर , काज अमारो वड कीधो :

धर्यो धनुष ब्रह्मांडधर ,धरण भार भूवरो हसी :

चित वृथा कान सुरभिय चहे चण सारूं लेवा असी !!१!!


वढियार धरा के रत्न कवि कान गांगड़ा कृत छन्द रेणकी

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