शिव जी रो छनद
दोहा
श्री गनपति नमो गिरजा नमो गंगाधरनाथ।
महरिषी गुण गावत मुनी हर डमरू धर हाथ।।
जोगेसर रूषी मुनी जपत भज गिरजा भरतार।
सुरपत जपत सारद विमल यस बारमबार।।
छंद
रोम कॅद
वट छाॅय झटो पट डाल वागमंबर तट हिमालय गंग तटे।
जट जुट मुकट सुशोभित जुगत पाप पंहारणी गंग पटे।।
लघु चंदर विराजत भाल जटा लग गावत गुण यूॅ पाप घटे।।
सुमरे मन शंकर नाथ उमाशिव काम परजारण पाप कटे
जिय करोङ सुधारण पाप कटे 1
ललके गल हार भुजांगि हलाहल तेज दिवाकर भाल तपे ।
भलके तन परबल तेज भभुतिय जौङ करो कई देव जपे ।।
मुलके मुख गोद गुणेश उमासुत माय उमा भज शोक मिटे
सुमरे मन शंकर नाथ उमा शिव काम परजारण पाप कटे
जिय करोङ सुधारण पाप कटे 2
झलके करण कुंडल जयोत रवि जिम चंचल भाल मयंक छटा।
जट शंकर शिश फबे जट शंकरी परबल ओटांय नाग पटा ।।
गुण ग्यान समापन नाथ गजानन देवि भज्यो मन दटे
सुमरे मन शंकर नाथ उमाशिव काम प् जारण पाप कटे
जिय करोङ सुधारण पाप कटे 3
लट वाल जटा हर शोभत जेलट जंबर अंग भभूत जचे।
लङियो डर मालाय कंड निलम्बर बंब वाघम्बर तन बसे।।
इति भाव अपम्बर श्वेत रामेश्वर माय दया दुख पाप मिटे
सुमरे मन शंकर''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''4
चंमके कर सुल हरि अत शोभत घंट टंमकत जाण घटा
डमके कर डमरू सद डंमकत नाटक गण सुघट नटा ।।
भव वांम विराजत माय भवानीय रेमन मातरू तात रटे।
सुमरे मन शंकर उमाशिव काम """"""""""""""""""""""""""5
झबके तन तेज प् भाकर ज्योतिय तात तपोबल जोग तपे,
भभके गण भूत भंयकर भेखज जोवत रूप अनेक जपे।।
जननी दश चार सजे नृप जंगल मानत है मन शोक मिटे
सुमरे मन शंकर"""""""""""""""""""""6
डंमके कर डाक रचे हर ताॅडव ध्यान हिये रधुनाथ धरे।
खलके जट मुकट धार गंगा खिले हाथ पिनाकिय दंड हरे।।
बखसे सुख सात अभेवर वेलीय गायले मागुण पाप घटे
सुमरे मन शंकर""''''''""""""""""""""7
भव सागर तार औधार भलोकर सुख शरीर निरोग सदा।
सुत नेह रू प्यार सातों सुख संपत पालक बालक मात पिता।।
शुभ आस कियो चित वास उमा शिव पास कटि सुख साज पटे
सुमरे मन शंकर"""" """""""""" 8
अहि पंड नवेखंड गुण उचारत मंड भ् मण्डय आद नमे।
चल चण्ड कटे दुख दण्ड चौरासी पण्ड दरसन दास परमे
विशनेश उमा शिव आप वसीलेय माताय तात संताप मिटे
सुमरे मन शंकर नाथ उमा शिव काम प् जारण पाप कटे
जिय काम प् जारण पाप कटे 9
कवि विशनदान जी बोर चारणान
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