छन्द मोतियदाम
विडारण सौचहि आप वडाळ,
त्रिहूं जग तारण हो ततकाळ ॥
महा दुख मेंटण आप मराळ ,
कृपाळ कृपाळ कृपाळ कृपाळ ॥१॥
दया कर राख सुखी मम देह ,
त्रिहूं विध ताप मिटे सब तेंह ॥
नमामिय नाथ वधारण नेह ,
सिरेह सिरेह सिरेह सिरेह ॥२॥
उबारण आप बिना कुण आय ,
जदूपति पाप सबै मिट जाय ॥
सरीपत कीधहि नाथ सदाय ,
सहाय सहाय सहाय सहाय ॥३॥
हरी मम लाज सबै तव हाथ ,
जुगो जुग साथ रहो जगन्नाथ ॥
रखो नह आप अबैत रघुनाथ ,
अनाथ अनाथ अनाथ अनाथ ॥४॥
प्रभू हम पावहि तोरि पनाह ,
सदा मम सीर रहै तव छांह ॥
कबू दुख होय नहीं अब कांह,
जुगांह जुगांह जुगांह जुगांह ॥५॥
असी मम आप कनें अरदास ,
अबै सब पूरण हो हरि आस ॥
प्रमेसर ठौर मिळे तव पास ,
निवास निवास निवास निवास ॥६॥
रखो नह ढील जरा रघुनाथ ,
हटे विपदा सब तोरहि हाथ ॥
सदा कर लेहु रहे मम साथ ,
सनाथ सनाथ सनाथ सनाथ ॥७॥
मिठो अरजीह करे अब मीर ,
भवों भव आप रहो मम भीर॥
सदाय करो अब आप सधीर ,
अमीर अमीर अमीर अमीर ॥८॥
मीठा मीर डभाल
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