छप्पय:


जयति जयति जग मात,जयति कारण सब करणी।
जयति भरण भंडार,जयति तारण भवतरणी।
जयति बुध्धि गुरुदेव,दत्त वायक वरदाई।
जयति आद अन्नादि,पींड ब्रहमांड उपाई।
अवलोक लोक साधत अखिल,करणी असुर वध कालिका।
रहो मोहि सहाय सब ठौर पर,जय जग चंडी ज्वालिका॥1
आदि अगम अवतार ,दैत महिषासुर दरनी।
आदि अगम अवतार, कैटभ मधु भच्छण करणी।
आदि अगम अवतार, रगत शिर रहै रग्गदर।
आदि अगम अवतार, खळण दळ दळ्या खग्गधर।
सुर नर असुर साधंत नित, करणि दुष्ट वध कालिका।
रहो मो सहाय रणखेत मह, जय जग चंडी ज्वालिका॥2
शेषनाग साधंत, जपै उर आठौ जामहि।
अरक चंद्र उडुमाळ, नित्त सुमिरै गुण ग्रामहि।
ब्रह्मा विष्णु महेश, सिध्ध चारण सुरराई।
अहरनिशा सुर असुर, आपरी करत वडाई॥
ब्रह्मांड अखिल व्यापक शकति, करणि हरणि प्रतिपालिका।
कर जौरि चंद कवि उच्चरैजग चंडी ज्वालिका॥3
नागणी छंदः
रिध्धि दे, सिध्धि दे, अष्ट नव निध्धि दे, वंश मै वृद्धि दे ,बाकबानी।
ह्रदयमें ज्ञान दे, चित्तमें ध्यान दे, अभय वरदान दे, शंभुरानी।
दुःख को दुर कर,सुख भरपुर कर,आश संपुर कर दास जानी।
सज्जन सों हित दे,कुटुम्ब सो प्रीत दे,जंग मै जीत दे मां भवानी ।।


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