छंद रोमकंद/ जगमाल सुरताणिया

जगमाल सुरताणिया रचित     
    
धिन एकम आज भवानिय चोसठ,मात धरा मनरंग मळी।
अति आनंद उर भर्यो रतनाकर,नेन अमी वरसात वळी।
सब शोभयमान हुवे सिंह ऊपर,आभ उड्डगण भोम भमे।
सिणगार सजे नवलाख सुशोभित,रात उजाळिय रास रमे ।।1

असमान उगो शिव भूषण शीतल,मंद समीर ज धीर बहे।
धवळा रमणीक जचे धर ऊपर,चंद धरा उतरान चहे।
मनमोहक रात भई नवरात की,जोगण जाजम जाय जमे।
सिणगार सजे नवलाख सुशोभित,रात उजाळिय रास रमे।।2

झळके पळके मळके अति आनन, खाळ अमी खळके ढळके।
पळके रखड़ी नग हीर पळोपळ,नीर सुची रळके जळके।
लळके सिर मेमद बोर छत्रों बिच,भाण उदोत ज जोत जमे।
सिणगार सजे नवलाख शुशोभित,रात उजाळिय रास रमे।।3

कर धार कटार सवार सबे किलकार करे खल दल खपे।
तलवार ज वार सहार निशाचर,धार जु शोणित आप धपे।
हलकार करे नवलाख हिळोमिळ,नाग सुरंदर तोय नमे।

सिणगार सजे नवलाख शुशोभित रात उजाळिय रास रमे  ।।4

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें