छंद रूप मुकुंद

रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय
                 दोहा 
शारदा माता समरु , धरु तो निज ध्यान , करजोडी “डोसल” कहे , दियो विधा मुज दान,

सतगुरु मुद समपियो , विधा और विश्र्वास , आज रवेशीय अंतरे , अळातम आकाश ,

              छंद रुप मुकूंद
आकाश पाताळ तुं धर अंबर , नाग सुर पाय नमे , दिगपाल दिगंबर आठ ही डुंगर सात ही शायर तेण समे , नव नाथ अने नर चौसठ नारीये हाथ पसारीये तेम हरी , रवराय रवशीय जग प्रवेशीय.वकळ वेशीय इश्वरी. जीये वकळ वेशीय इश्वरी…..टेक. `||1||

सतयुग वीसे मही दाणव साथीये , बाथीये कोई न जोत बिया , हणीया सर हुकळ हुयशे हाथीये , हारये क्रोड ते़तीस हिया , तब साम तणे अंग उुपनी सुंदर , कोई एेकादशी रुप करी , रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय … ||2||

मय मोहन रूप हण्यो महि मंडळे लोक ही लोहळ सदय लही , सब सो सठ क्रोड दईत संहारण , राह तणे कंठ आव्य रही , दळ देव तणे अंग शंख अतीदय , वे लखमी होय नाथ वरी , रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय …||3||

तब त्रेता मज तुज ने देवीये , सेवा़ीये कारण रुप सती , अदभुत पराक्रम तुज तणे अंग , मोहीयो रावण फेर मती , लंक लखण राम पताळ गीयो लेह पेहमे रावण हुत परी , रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ………||4||

दूवापर अंत हुवो दुरजोधन , मान तंगी बहु राज मही , सब सभाविच बोलावीयो शकती , सोय द्रोपतीय आप सही , कोई कौरव रे शीर सोंप असो कर खोई दियो सब रा खरी , रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ………||5||

आ कळ जगमां किधाई उूपर मेंद तणे शीर आव मसी, खटमास अती ते परसो खोळीयो, तोळीयो जोगीने आप तसी,नन काट मसतक ईम कहे नर , कोई भयंकर साद करी ,
रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ………||6||

बोली तब भाट कवेशर बडीयो , पंड्ये मावल भीड पडी, सपना तर अंतर आविये चंडिये,
बात असंडीय तीमबडी , आपरो सेवग जाण उुंबारीये ,कुंभ बोलावीये साद करी , रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ………||7||

खाधीय सोगंध राणीगे खोटीय , मोटीये देवरी तेम मया , ए मकवाण री दशाय ओटीय , जोटीये काढीये तेम ज्या , कोई कोप भयंकर राव परे कर बाबाह रे शर कीध बरी , रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय……||8||

कांक वरण ना जोरथी काढीये आठीये पोर संताप असो , मत वीसळरी दशा होय ई माठीये त्राठीये गायडी हेड तसो , मारीय वीसळ क्रोध करी माडी ,धाव कव्यारी ध्यान धरी , रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ……||9||

सवंत अढार पंचाणु नी साल मां ,राघवश घटमांय रमे , खेध करतल नाखीये खोदीये , नर मोटा भूप पाय नमे , सब्ब चारण का कोई काज सुधारण कारज कीधाय रुप करी , रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ………||10||

चारणीया मध्य तुंज शकतीये , जयीये राघव सात जमी , रंगभीना रंगीला ने खुब रमाडीये, राग रंग हुते फाग रमी , रख्य राघवने दीधी असारंग ,कव्य “डोसल” नी भेर करी , रवराय रवेशीय जग प्रवेशीय ………||11||

               कळस छंद छप्प्य
चौद भुवन तन सार सात पाताळ सवीजे सपत दीप दधि सात , तसा नवखंड तवीजे , अष्टकुळ उच्चार , सिध्ध चोराशी सोहे , नवे ग्रहे नवनाथ .मुनी अठयासी माहे , रवेशी आई एता रसण , गावे मख मख गाथ ही , करी भेर “डोसल” कहे आई मुज अनाथरी

रचयता .डोसलभाई सांव (गीर)

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