सिंह होय सवार चली जबही ,
तब देख सबै असुरांण डरै ॥
सगती किन कारण आज चली ,
यह बात हमें नह जान परै ॥
अब कौन बतावत ये बतियां ,
मन ही मन सौच अपार करै ॥
नव रूप धर्यो उमिया रमवा ,
इम जान सबै हरखे हियरे ॥१॥

जद आवहि मोंगल आवङ चामुंड
बूट बहूचर मात बङी ॥
करणी किनयांण कृपा कर आवत
सारण काज हि सींह चङी ॥
जद होय खुशी कर खूब जिकै ,
जयकार तणी जद होङ पङी  ॥
थइकार तणो घण थाट थयो
तब सूर अवाज अकाश अङी ॥२॥

नव रात रमै नव रास नया ,
नव ही नव ओपत रूप नया ॥
नथ नाक मनोहर शोभत हैं ,
कर कांकण रा शणगार कर्या ॥
मिळ चौसठ जौगण साथ सबै ,
धिन रूप अनूपहि मात धर्या ॥
जद आयहि दैखण दैव सबै ,
अवनी पर रास रमै उमिया ॥३॥

पग झांझर की झनकार बजी ,
नकबेसर को अति थाट नयो ॥
बिछुआय लगै बजनैय बहू ,
थइकार घणो चहु और थयो ॥
नर नाग सबै सुर पाय नमै ,
जयकार जिकै जय मात जयो ॥
कर जौङ कहै अब मीर मिठो ,
जग मात तणा गुण गाय रह्यो ॥४॥
मीठा मीर डभाल

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